इस वर्ष का आज अंतिम दिन है। कल हम नई आशाओं, विचारों और कामनाओं के साथ नए वर्ष में प्रवेश करेंगे। किंतु प्रवेश करने से पहले जरा क्षणभर के लिए रुकें और सोचें कि नए वर्ष की जिस वैश्विक राजनीतिक आबोहवा में हम प्रवेश करने के लिए उत्सुक हैं उसको स्वच्छ अथवा दूषित करने के लिए पिछले वर्ष विश्व के दिग्गज राजनेताओं की क्या भूमिका रही? नए वर्ष की बुनियाद उनके उन्हीं सही और गलत निर्णयों पर रखी जाएगी। आइए, हम यहां उन्ही महत्वपूर्ण घटनाओं/ निर्णयों का उल्लेख करते हैं जिनका बोझ या फल लेकर हम अगले वर्ष में प्रवेश करेंगे।
जनवरी बीस को ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। यहीं से अमेरिका के बदलने की शुरुआत हुई। वैश्विक हितों की सोच को त्यागकर उन्होंने 'अमेरिका प्रथम' की नीति को अपनाया और अपनी विदेश नीति को व्यावसायिक तराजू पर तौला। परिणाम यह है कि अमेरिका अब अपनी वैश्विक लीडर की भूमिका से बाहर होता दिखाई दे रहा है। साथ ही, विश्व में सर्वशक्तिमान होने के पद से भी जूझता दिखाई दे रहा है।
अमेरिका स्वयं अपने ही हितों की रक्षा करते करते इतना बेसुध हो गया कि उसके शीश पर दुनिया के सुपर पॉवर होने का ताज बस एक औपचारिकता बन चुका है। कोई छोटे से छोटा देश भी आज उससे नहीं डरता। उत्तरी कोरिया की बात तो छोड़ दें, फिलीपींस हो या पाकिस्तान- अब ये देश भी समझ गए हैं कि प्रेसीडेंट ट्रंप की धमकियों में गीदड़-भभकियां ही अधिक हैं। ऊपर से जरूरतमंद देशों को दी जाने वाली दान राशि में भी निरंतर कमी लाने का सिलसिला यूं ही चला तो कुछ समय में अमेरिका अपना रुतबा भी खो बैठेगा।