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कोरोना' के असर से फटा द्रोणागिरि ग्लेशियर? जानिए क्या कह रहे हैं वैज्ञानिक

कोरोना' के असर से फटा द्रोणागिरि ग्लेशियर? जानिए क्या कह रहे हैं वैज्ञानिक
एमपी दुनिया डेस्क, नई दिल्ली कोरोना में लॉकडाउन के दौरान हुआ जलवायु में परिवर्तन।शहरों से दिखने लगी थीं हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं प्रदूषण न होने से सूरज की तपन ज्यादा, इसलिए पिघल कर फट गया ग्लेशियर चार दिन पहले पड़ी बर्फ का लोड नहीं झेल पाए हिमनद। उत्तराखंड के चमोली में रविवार को द्रोणागिरी ग्लेशियर के फटने की एक अहम वजह कोरोना का असर भी माना जा रहा है। दरअसल विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन से जलवायु में परिवर्तन आया और ऊपरी वातावरण इतना साफ हो गया कि ग्लेशियर पर जमी बर्फ धीरे-धीरे पिघलने की बजाय बहुत तेजी से पिघली और हिमनद फट गया। ग्लेशियरों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में भी ऐसे खतरों के बने रहने की आशंका है।  वैज्ञानिक भारद्वाज बोले-सूरज की तपिश नहीं झेल पा रहे ग्लेशियर भारतीय मौसम विज्ञान सोसाइटी में उत्तर भारत के चेयरपर्सन और वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसपी भारद्वाज कहते हैं कि उत्तराखंड के चमोली में रविवार को ग्लेशियर के फटने की बहुत-सी वजह हो सकती है। इसका कारण पता किया जाएगा, लेकिन प्रथम दृष्टया आकलन है कि सूरज की ज्यादा तपिश के चलते ग्लेशियर की बर्फ न सिर्फ बहुत तेजी से पिघली बल्कि ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से में जमी बर्फ ज्यादा होने के चलते खिसकी। जिससे हिमनदों के निचले हिस्से में जमें पानी के स्रोत टूट गए और तीव्र गति से पास की धौलगंगा नदी में बह गए। इसने तबाही मचा दी।  अभी प्रदूषण नहीं के बराबर वैज्ञानिकों का कहना है कि ऊपरी हिमालयन रीजन में इस वक्त प्रदूषण के कण न के बराबर हैं। इससे सूरज की तपिश पिछले सालों की तुलना में ज्यादा तीव्र है। जो ग्लैशियरों पर जमने वाली ऊपरी बर्फ को ज्यादा तेजी से पिघला रही है।  लॉकडाउन से साफ हुआ मौसम डॉक्टर एसपी पाल कहते हैं कि कोरोना में लगे लॉकडाउन से मौसम बहुत साफ हुआ है। जब मैदानी इलाकों से हिमालय की श्रृंखलाएं दिखने लगीं थीं तभी अनुमान लगाया गया था कि इस बार क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन के आंशिक असर दिखने लगेंगे।  इस बार बर्फ भी ज्यादा पड़ी इसी 4 फरवरी को हिमालय रेंज और उसके शहरी इलाकों, जिनमें चार हजार फीट से भी कम ऊंचाई वाले शहर शामिल थे, वहां जमकर बर्फ पड़ी। 15 से 18  हजार फीट ऊपर वाले ग्लेशियर में भी खूब बर्फ पड़ी। माना जा रहा है कि ज्यादा बर्फ पड़ने से ग्लेशियर फट गए।  पर्यावरणविद पांडेय बोले, अनोखी घटना नहीं पर्यावरणविद रमेश कुमार पांडेय कहते हैं कि चमोली में आई आपदा के कारणों को तो सैटेलाइट से पता किया जाएगा। जिस तरह की घटना रविवार को हुई है वो हिमालयन रीजन में कोई अनोखी नहीं हैं। जो घटना हुई है उसको वैज्ञानिकों की भाषा में " ग्लेशियर लेक आउट बर्स्ट फ्लड"  (जीएलओएफ) कहते हैं। इसका मतलब होता है कि हिमनदों के नीचे के एकत्रित पानी के पूरे भंडार का यकायक बहुत तेजी से बह जाना। रविवार की घटना भी यही है। ऐसी घटना के कई कारणों में हीट, ग्लेशियर रुट पर मानवीय प्रक्रियाएं होना,  क्लाइमेट चेंज और धरती की प्लेटों के हिलने का भी कारण हो सकता है। पांडेय का मानना है कि कई बार एवलांच होने से भी ऐसी घटनाएं होती हैं। वह मानते हैं कि हाल के दिनों में वातावरण में कुछ परिवर्तन तो आया है, लेकिन वह स्थायी है या नहीं, और उसका सीधा असर ऐसी घटनाओं पर पड़ेगा या नहीं यह सब शोध का विषय है।  लद्दाख के सोनम बोले-इस बार मौसम काफी बदला लद्दाख में पर्यावरण पर नजदीक से काम करने वाले हेमिस मोनेस्ट्री से जुड़े वुन्ग सोनम कहते हैं कि इस बार मौसम पहले सालों की अपेक्षा बहुत बदला है। खासकर ग्लेशियर भी अपने स्वरूप को छोड़ रहे हैं, लेकिन इन ग्लेशियरों का बदलता स्वरूप अभी नहीं पता चलेगा। सोनम का कहना है कि जो घटना रविवार को चमोली में हुई वो निश्चित रूप से सामान्य घटना नहीं है। उसको बदले परिवेश में क्लाइमेट चेंज से जोड़कर देखना होगा। ताकि आगे ऐसी किसी बड़े प्रलय से बचा जा सके। 

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